उत्पन्ना एकादशी की तिथि समय और महत्त्व

उत्पन्ना एकादशी वर्ष भर की चार एकादशियो में से एक है। मार्घ शीर्ष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन माता एकादशी का जन्म हुआ था इस कारण इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। माँ एकादशी भगवान विष्णु की ही शक्तियों का एक रूप है। यह एकादशी व्रत प्रारम्भ करने के लिए उत्तम मानी गई है अथार्थ यदि आप एकादशी व्रत करना चाहते है तो उत्पन्ना एकादशी से शुरू कर सकते है। एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो कर द्वादशी तिथि को पारण करने पर समाप्त होता है। इस दिन प्रातः काल जल्दी उठ कर स्नान आदि से निवृत हो कर साफ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का पिले फूल, हल्दी, नारियल, मिठाई, पिले फल आदि से पूजा आराधना करे तथा श्री हरी को तुलसी दल अर्पित करे।

उत्पन्ना एकादशी आरम्भ :- 30 नवंबर 2021 , मंगल वार प्रातः 04 :17 बजे से

उत्पन्ना एकादशी समापत :- 01 दिसंबर 2021 , बुध वार मध्य रात्रि 02 :17 बजे

व्रत के नियम :-

। दसवीं तिथि को सूर्यास्त से पहले भोजन करे।
2 द्वादशी तिथि पर पारण करने के पश्चात ही व्रत पूर्ण करे।
3 तामसी भोजन न करे तथा हल्का व् सादा भोजन करे।
4 विष्णु सहस्त्र नाम का जप करे।
5 किसी भी व्यक्ति की निंदा करने से बचे।
6 माँ तुलसी को संध्या के समय घी का दिया लगाए।
7 गरीबो को पिले रंग की वस्तुओ का दान दे।

विशेष :- वर्ष भर की हर एकादशी तिथि को माता तुलसी भगवान विष्णु के लिए व्रत रखती है इस कारण इस दिन तुलसी माँ को न जल अर्पित किया जाता है और ना ही तुलसी दल तोडा जाता है। इसके साथ ही इस दिन माँ लक्ष्मी जी की पूजा का भी विशेष महत्व है साथ ही इस दिन पीपल का वृक्ष लगाना और पूजा करने से पित्रो का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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